हर दूसरे बच्चे की आंखें कमजोर, रोज़ाना 13 घंटे मोबाइल स्क्रीन पर बिता रहे बच्चे
रोज़ाना औसतन 13 घंटे तक मोबाइल, लैपटॉप और टैबलेट स्क्रीन पर समय बिता रहे हैं, जिससे उनकी आंखों पर गंभीर असर पड़ रहा है। एक रिसर्च कहती है कि देश में 5 से 18 साल तक के बच्चों में मायोपिया (निकट दृष्टि दोष) तेजी से बढ़ रहा है।

देश में बच्चों की दृष्टि क्षमता को लेकर चिंता बढ़ती जा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि आज हर दूसरा बच्चा कमजोर नजर से जूझ रहा है। यदि यह स्थिति यूं ही बनी रही, तो 2050 तक भारत में एक करोड़ से अधिक बच्चों को चश्मा लगाना पड़ेगा। आज हर घर में बच्चों के पास एक मोबाईल है और उसमें दो जीबी नेट उपलब्ध है। बच्चे दिन भर रील्स देखकर अपना समय बिता रहे हैं।
एक समय ये भी था
एक समय था जब बच्चे खेल खिलौनों से खेलते थे, लाईब्रेरी में बैठकर पढ़ाई करते थे लेकिन आज कल बच्चे ऐसा नहीं कर रहे हैं। आज कल के बच्चें मोबाईल चलाकर सोते हैं और मोबाईल चलाकर ही उठते हैं। स्कूलों ने भी मोबाईल से पढ़ाई शुरु हो गई हैं, अब तो ऑनलाईन क्लासें भी होने लगी हैं। हालांकि इनमें कोई बुराई नहीं है बल्कि ये तो अच्छा ही है। लेकिन सवाल तब उठता है जब इन्ही लाभकारी संसाधनो का दुरुपयोग होने लगे, पढ़ाई, रिसर्च, बात करने तक तो मोबाईल ठीक है लेकिन अब लोग इसे गैम, सोशल मीडिया और रील्स देखने में ज्यादा उपयोग कर रहे हैं।
चौंकाने वाली रिसर्च
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि बच्चे अब रोज़ाना औसतन 13 घंटे तक मोबाइल, लैपटॉप और टैबलेट स्क्रीन पर समय बिता रहे हैं, जिससे उनकी आंखों पर गंभीर असर पड़ रहा है। एक रिसर्च कहती है कि देश में 5 से 18 साल तक के बच्चों में मायोपिया (निकट दृष्टि दोष) तेजी से बढ़ रहा है। आंखो के विशेषज्ञों के मुताबिक स्क्रीन टाइम में इजाफा, आउटडोर गतिविधियों की कमी और गलत लाइफस्टाइल इसकी प्रमुख वजहें हैं। इंडियन मेडिकल रिसर्च जर्नल की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, हर साल करीब 8-10% बच्चों में नजर की समस्या पाई जा रही है, और यह आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है।
विशेषज्ञों की चेतावनी
विशेषज्ञों का कहना है “अगर समय रहते जागरूकता नहीं बढ़ाई गई, तो 2050 तक हर तीसरे भारतीय बच्चे को चश्मे की जरूरत होगी।
विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों को 6 घंटे से ज्यादा स्क्रीन टाइम से दूर रखना, हर दिन धूप में कम से कम 1 घंटा खेलना, और हर 20 मिनट स्क्रीन देखने के बाद 20 सेकंड के लिए दूर देखना आंखों की सेहत के लिए बेहद जरूरी है।
माता-पिता की जिम्मेदारी
हर बच्चे के पैरेंट्स की जिम्मेदारी यह बनती है कि बच्चों का स्क्रीन टाइम सीमित करें। बच्चों को बाहर खेलने के लिए प्रोत्साहित करें। 6 महीने या साल में एक बार आई टेस्ट ज़रूर करवाएं, स्क्रीन की ब्राइटनेस और कंट्रास्ट संतुलित रखें। ज्यादा से ज्यादा किताबें पढ़ने को प्रेरित करें, हर वक्त मोबाईल चलाने के नुकसान गिनाए। इस प्रकार से बच्चों में जागरुकता आएगी और बच्चें धीरे धीरे मोबाईल से दूर भी होगें।
बच्चों का भविष्य खतरे में
बढ़ती डिजिटल निर्भरता न केवल आंखों, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य, नींद की गुणवत्ता और पढ़ाई में एकाग्रता पर भी असर डाल रही है। यह रिपोर्ट माता-पिता और नीति निर्माताओं दोनों के लिए चेतावनी का संकेत है।