विपक्ष और जनता के दबाव में चिकित्सा मंत्री देंगे इस्तीफा ?

राजस्थान की राजनीति इस समय फिर से हलचल में है। जयपुर के सवाई मानसिंह (एसएमएस) अस्पताल में रविवार रात लगी आग में कई मरीजों की दर्दनाक मौत के बाद अब पूरा मामला चिकित्सा मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर की जवाबदेही और इस्तीफे की मांग तक पहुँच गया है।

विपक्ष और जनता के दबाव में चिकित्सा मंत्री देंगे इस्तीफा ?

राजस्थान की राजनीति इस समय फिर से हलचल में है। जयपुर के सवाई मानसिंह (एसएमएस) अस्पताल में रविवार रात लगी आग में कई मरीजों की दर्दनाक मौत के बाद अब पूरा मामला चिकित्सा मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर की जवाबदेही और इस्तीफे की मांग तक पहुँच गया है। यह आग महज एक हादसा नहीं रही, बल्कि उसने प्रदेश के स्वास्थ्य तंत्र, सरकारी लापरवाही और राजनीतिक जिम्मेदारी—तीनों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

घटना रविवार रात करीब साढ़े ग्यारह बजे अस्पताल के न्यूरो ट्रॉमा यूनिट में शॉर्ट सर्किट से शुरू हुई। कुछ ही मिनटों में पूरा वार्ड धुएं से भर गया और अफरा-तफरी मच गई। परिजनों का कहना है कि आग लगने की सूचना देने के बावजूद अस्पताल स्टाफ ने शुरुआती चेतावनी को नजरअंदाज किया और रेस्क्यू में देरी की। दमकल की गाड़ियाँ देर से पहुंचीं, फायर अलार्म और स्प्रिंकलर सिस्टम काम नहीं कर पाए। आखिरकार धुएं और जलन के कारण कई मरीजों की मौके पर ही मौत हो गई। इस लापरवाही ने पूरे राजस्थान को झकझोर दिया।

रात को ही मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा मौके पर पहुंचे, उन्होंने अधिकारियों को फटकार लगाई, जांच समिति गठित की और मृतकों के परिजनों को 10 लाख रुपये की सहायता राशि की घोषणा की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने भी ट्वीट कर घटना पर दुख जताया। लेकिन लोगों के आक्रोश के केंद्र बने — राज्य का स्वास्थ्य विभाग और उसके मुखिया गजेंद्र सिंह खींवसर।

चिकित्सा मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर घटना के समय अपने गृह क्षेत्र खींवसर (नागौर) में थे और वे अगले दिन दोपहर तक जयपुर पहुंचे। विपक्ष और जनता दोनों ने इसे संवेदनहीनता और गैर-जिम्मेदारी बताया। कांग्रेस ने उनके इस्तीफे की मांग करते हुए कहा कि अगर यह हादसा किसी निजी अस्पताल में हुआ होता तो मालिक और डॉक्टर जेल में होते, लेकिन सरकारी लापरवाही पर कोई जवाबदेह नहीं है। हनुमान बेनीवाल ने भी तीखे तेवर अपनाते हुए कहा कि “राजा-महाराज राजनीति के लिए नहीं बने हैं, वे महलों और होटल चलाने में ही अच्छे लगते हैं।”

गजेंद्र सिंह खींवसर न केवल एक वरिष्ठ नेता हैं, बल्कि राजस्थान के जाने-माने व्यवसायी और खेलप्रेमी भी हैं। 1957 में खींवसर किले में जन्मे, उन्होंने दून स्कूल से पढ़ाई और कनाडा के वेस्टर्न ओंटारियो विश्वविद्यालय से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में स्नातक किया। स्क्वैश में भारत का प्रतिनिधित्व किया और पीएसए विश्व रैंकिंग में 28वां स्थान पाया। राजनीति में वे 2003 से लगातार सक्रिय हैं और ऊर्जा, वन, पर्यावरण तथा खेल विभागों की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। लेकिन इस बार उनके कंधों पर जो विभाग है—वह सीधे जनजीवन से जुड़ा है। इसलिए इस त्रासदी के बाद सवाल भी सबसे पहले उन पर ही उठ रहे हैं।

घटना के बाद से सोशल मीडिया पर जनता गुस्से में है। #SMSHospitalFire हैशटैग लगातार ट्रेंड कर रहा हैं। लोगों का कहना है कि यदि राज्य का सबसे बड़ा अस्पताल ही असुरक्षित है, तो बाकी जिलों की हालत का अंदाजा सहज लगाया जा सकता है। मुख्यमंत्री ने प्रदेश के सभी सरकारी अस्पतालों में फायर सेफ्टी ऑडिट कराने का आदेश दिया है, लेकिन जनता यह भी पूछ रही है कि क्या ऐसे ऑडिट सिर्फ “कागजों में” रह जाएंगे या वास्तव में कुछ बदलेगा?

अब सवाल यह है कि क्या सरकार बढ़ते जनदबाव को शांत करने के लिए चिकित्सा मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर का इस्तीफा लेगी, या जांच और सुधार की आड़ में मामला ठंडा पड़ जाएगा। खींवसर स्वयं कह चुके हैं कि मुख्यमंत्री सक्रिय और संवेदनशील हैं, और सरकार दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करेगी। परंतु जनता के मन में यह भावना गहराती जा रही है कि जब तक शीर्ष स्तर पर जवाबदेही तय नहीं होगी, तब तक ऐसी घटनाएँ रुकने वाली नहीं हैं।

राजनीति में कभी-कभी एक हादसा ही पूरे शासन की संवेदनशीलता की परीक्षा बन जाता है। एसएमएस अस्पताल की यह आग ऐसी ही परीक्षा है—न केवल चिकित्सा मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर के लिए, बल्कि मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की सरकार के लिए भी। अब देखना यह है कि सत्ता नैतिकता की कसौटी पर कितनी खरी उतरती है—क्योंकि जनता को अब शब्द नहीं, जवाबदेही चाहिए।