मेवाराम के खिलाफ पोस्टर हमलों का मास्टरमाइंड कौन ?
बाड़मेर में मेवाराम जैन की कांग्रेस वापसी के बाद पोस्टर युद्ध छिड़ गया है। गुटबाजी, जातीय समीकरण और विरोध ने कांग्रेस की सियासत गरमा दी है।

बाड़मेर में कांग्रेस पार्टी की राजनीति अब पोस्टरों और गुटबाजी की भेंट चढ़ गई है। पूर्व विधायक मेवाराम जैन की करीब 20 महीने बाद कांग्रेस में वापसी ने पार्टी के भीतर ही एक बड़ा तूफान खड़ा कर दिया है। एक ओर कांग्रेस का प्रदेश और राष्ट्रीय नेतृत्व अशोक गहलोत की सिफारिश और आलाकमान की सहमति से मेवाराम जैन को पार्टी में वापस ले आया है, वहीं दूसरी ओर स्थानीय स्तर पर विरोध की आंधी चल रही है। हरीश चौधरी, हेमाराम चौधरी और उम्मेदाराम बेनीवाल जैसे दिग्गज खुले तौर पर इस फैसले से असहज हैं और यही असहमति अब सड़कों पर पोस्टर युद्ध बनकर सामने आ गई है।
पचपदरा से लेकर बाड़मेर शहर तक जगह-जगह लगे पोस्टरों में दो तस्वीरें दिख रही हैं—एक तरफ स्वागत और शक्ति प्रदर्शन तो दूसरी तरफ अश्लील वीडियो विवाद को उछालते विरोधी पोस्टर। इन विरोधी पोस्टरों में ‘महिलाओं का अपमान नहीं सहेगी कांग्रेस’ और ‘बलात्कारी हमें स्वीकार नहीं’ जैसे नारे लिखे गए हैं, जिनके चलते बाड़मेर का माहौल और अधिक गरमा गया है। दिलचस्प यह है कि जिन जिला अध्यक्षों के नाम से यह पोस्टर लगाए गए, उन्हें खुद इसकी जानकारी नहीं थी। इसने मेवाराम समर्थकों को मजबूती दी है और विरोधी खेमे को बैकफुट पर ला दिया है।
मेवाराम जैन का राजनीतिक सफर हमेशा विवादों में रहा है। 2008 में विधायक बने, लेकिन 2023 में अश्लील वीडियो मामले में फंसने के बाद उन्हें कांग्रेस से निष्कासित कर दिया गया। अब करीब 20 महीने बाद वापसी हुई है तो कांग्रेस कार्यकर्ताओं का बड़ा हिस्सा बंटा हुआ नज़र आ रहा है। विरोधी खेमे का तर्क है कि ऐसे नेता की वापसी से पार्टी की छवि धूमिल होगी, जबकि समर्थक इसे गहलोत और आलाकमान की दूरदर्शिता बता रहे हैं।
इस पूरे विवाद में जातीय समीकरण भी साफ झलक रहे हैं। विरोध करने वाले अधिकतर नेता जाट समाज से आते हैं और सोशल मीडिया पर जाट युवा वर्ग मेवाराम का मजाक उड़ाता नजर आ रहा है। दूसरी तरफ अन्य जातियों का एक वर्ग चुपचाप मेवाराम के पक्ष में खड़ा दिखाई देता है। यही वजह है कि कांग्रेस का यह विवाद केवल संगठनात्मक मतभेद नहीं बल्कि जातीय वर्चस्व की लड़ाई का रूप भी ले चुका है।
भाजपा इस मौके का खूब लाभ उठा रही है। पार्टी कार्यकर्ता खुलेआम कह रहे हैं कि अगर हरिश चौधरी ने कभी कहा था कि चरित्रहीन नेताओं के साथ मंच साझा नहीं करेंगे, तो अब उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए। इससे साफ है कि मेवाराम जैन की वापसी से कांग्रेस को जितना फायदा होना चाहिए था, उससे कहीं ज्यादा नुकसान हो रहा है और पार्टी की अंदरूनी फूट विपक्ष के लिए हथियार बन गई है।
अब सबकी नजर इस बात पर टिकी है कि मेवाराम जैन बाड़मेर पहुंचने के बाद पहला सार्वजनिक संदेश क्या देंगे और विरोधी खेमे की अगली चाल क्या होगी। कांग्रेस के लिए यह पल निर्णायक साबित हो सकता है—या तो गुटबाजी और जातीय समीकरणों को साधकर पार्टी एकजुट होगी, या फिर यह विवाद कांग्रेस की जमीनी पकड़ को और कमजोर कर देगा।