दिवंगत रामेश्वर डूडी से जुडे अनछुए प्रेरक प्रसंग
राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे और वरिष्ठ कांग्रेस नेता रामेश्वर डूडी का आज निधन हो गया। निधन के बाद उनके व्यक्तित्व और कृतित्व से जुडे पहलुओं पर लगातार चर्चा हो रही है। उनकी पहचान बाकी नेताओं से काफी हटकर थी। एक तो वे बाकी नेताओं की तरह परंपरागत कुर्ता पायजामा के बजाय पैंट शर्ट और वह भी इनशर्ट करके बैल्ट के साथ। यह उनकी पढी लिखी और आधुनिक छवि को दर्शाता है।

राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे और वरिष्ठ कांग्रेस नेता रामेश्वर डूडी का आज निधन हो गया। निधन के बाद उनके व्यक्तित्व और कृतित्व से जुडे पहलुओं पर लगातार चर्चा हो रही है। उनकी पहचान बाकी नेताओं से काफी हटकर थी। एक तो वे बाकी नेताओं की तरह परंपरागत कुर्ता पायजामा के बजाय पैंट शर्ट और वह भी इनशर्ट करके बैल्ट के साथ। यह उनकी पढी लिखी और आधुनिक छवि को दर्शाता है। दूसरा वे हमेशा किसानों और ग्रामीण क्षेत्रों से जुडी समस्याओं को लेकर हमेशा सजग और संवेदनशील रहते थे।
दूसरा राजस्थान के सबसे बडे संख्याबल जाट समाज से आने के कारण प्रदेश में लगातार गाहे—बगाहे किसान मुख्यमंत्री अथवा जाट मुख्यमंत्री को लेकर कांग्रेस में सबसे मजबूती से आवाज उठाने वाले रामेश्चर डूडी ही थे। विधानसभा चुनाव 2023 से ठीक पहले राजधानी जयपुर में आयोजित हुए जाट महाकुंभ का आयोजन हुआ जिसमें रामेश्वर डूडी ने खुलेआम और मजबूती के साथ जाट मुख्यमंत्री का मुद्दा उठाकर खुद की पार्टी कांग्रेस की मुश्किलें बढा दी, जिसका खामियाजा कांग्रेस को आगामी विधानसभा चुनावों में सत्ता गंवाकर उठाना पडा था।
रामेश्वर डूडी ने गहलोत सरकार के समय और उससे पहले नेता प्रतिपक्ष रहते नीतियों और जनहित से जुडे मुददों पर अपनी ही पार्टी और सरकार को कई बार कटघरे में खडा करने का काम किया। इसी कारण लगातार उनकी वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से लगातार खटपट चलती रहती थी। राजनीतिक जानकारों के अुनसार विधानसभा कार्यकाल 2013—2018 के दौरान उन्होंने नेता प्रतिपक्ष के तौर पर बेहतरीन काम किया और 2018 के विधानसभा चुनाव में तत्कालीन कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट के साथ मिलकर पूरे प्रदेश में जोरदार चुनावी प्रचार किया। वहीं तत्कालीन वसुंधरा सरकार के खिलाफ माहौल बनाकर प्रदेश की सत्ता में कांग्रेस की वापसी करवाई। इन सबके बावजूद अशोक गहलोत से अनबन के कारण डूडी खुद अपनी विधानसभा सीट नोखा हार गए। जब कांग्रेस सत्ता में नहीं थी और 21 सीटों पर सिमटी हुई थी, तब नेता प्रतिपक्ष के तौर पर रामेश्वर डूडी ने सड़कों पर लड़ाई लड़ी और जब कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई तो खुद अपनी सीट हार कर सत्ता से बाहर हो गए और उनके हिस्से में आया केवल संघर्ष।