पहले दी जा चुकी थी चेतावनी, फिर भी नहीं हुई कार्रवाई, 8 मौतों का हत्यारा कौन ?

6 अक्टूबर को राजस्थान के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल सवाई मानसिंह (SMS) अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर में सोमवार को आग लगने से 8 मरीजों की दर्दनाक मौत हो गई। नजारा यह था कि जिन मरीजों के साथ उनके परिजन थे वहीं उनके लिए फरिश्ते बने।

पहले दी जा चुकी थी चेतावनी, फिर भी नहीं हुई कार्रवाई, 8 मौतों का हत्यारा कौन ?

जयपुर। 6 अक्टूबर को राजस्थान के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल सवाई मानसिंह अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर में सोमवार को आग लगने से 8 मरीजों की दर्दनाक मौत हो गई। नजारा यह था कि जिन मरीजों के साथ उनके परिजन थे वहीं उनके लिए फरिश्ते बने।
सवाल यंहा उठता है कि जब ट्रॉमा सेंटर इंचार्ज द्वारा इस संभावित खतरे को लेकर कई बार लिखित शिकायतें दी गई थीं, लेकिन इसके बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। आखिर यह जिम्मेदारी कौन लेता है कि इसका गुनहगार कौन है? सवाल तो यह भी बनता है कि आखिर इन 8 मौतों का हत्यारा किसे माना जाए। 

पहले भी जताई थी दुर्घटना की आशंका

सूत्रों के मुताबिक, ट्रॉमा सेंटर के इंचार्ज डॉक्टर ने पिछले कुछ महीनों में दर्जनों बार अस्पताल प्रशासन को बिजली व्यवस्था में खराबी और शॉर्ट सर्किट की आशंका को लेकर आगाह किया था। महज दो दिन पहले भी एक रिपोर्ट के माध्यम से उन्होंने बिजली लीकेज और उपकरणों में करंट फैलने की बात उठाई थी। लेकिन हमेशा की तरह, शिकायतें फाइलों में दबकर रह गईं और ज़मीनी स्तर पर कोई एक्शन नहीं लिया गया। और इस लापरवाही नतीजा हुआ ये कि जो जीने के लिए अस्पताल इलाज कराने आए थे वो लोग वेमौत मारे गए। भला उन लोगों को कहां पता था कि जिस उम्मीद से अस्पताल जा रहे हैं वहां से ठीक होकर घर भी लौटेंगे। ये हादसा कोई आम हादसा नहीं है बल्कि उक्त अधिकारियों की लापरवाही का नतीजा है जो जानकर भी अंजान बने रहे।

लापरवाही बनी जानलेवा

जानकारों का कहना है कि जिस वार्ड में हादसा हुआ, वहां पहले भी मरीजों और स्टाफ को करंट लगने की घटनाएं सामने आई थीं। लेकिन उन शिकायतों को नजरअंदाज कर दिया गया। यदि समय रहते बिजली व्यवस्था की जांच और सुधार करवा ली जाती, तो शायद आज 8 लोगों की जान बचाई जा सकती थी।


परिजनों का आक्रोश, जांच की मांग

हादसे के बाद परिजनों में भारी आक्रोश देखने को मिला। कई लोगों ने अस्पताल परिसर में प्रदर्शन करते हुए दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई और निष्पक्ष जांच की मांग की। मुख्यमंत्री ने घटना पर दुख जताते हुए उच्चस्तरीय जांच के आदेश दे दिए हैं।


सवाल तो पूछे जाएंगे

यह हादसा सिर्फ एक तकनीकी खामी का परिणाम नहीं है, बल्कि सिस्टम की लापरवाही और गैरजिम्मेदारी का गंभीर उदाहरण है। एक तरफ सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने की बात करती है, वहीं दूसरी ओर ज़मीनी हालात इससे उलट दिखाई देते हैं। एक डॉक्टर और अधिकारी का वेतन लाखों में होता है लेकिन उनका काम हजारों में भी नहीं होता होगा तभी तो इतने बड़े बड़े कांड हो जाते हैं। यदि समय रहते लापरवाही नहीं की होती तो जो जीने की उम्मीद से अस्पताल आए थे वो उसी उम्मीद से अपने घर भी वापस चले जाते।