जयपुर अस्पताल में लगी आग...परिजन ही बने मरीजों के फरिश्ते...जिम्मेदार रहे नदारद
जयपुर के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एसएमएस के ट्रॉमा सेंटर में 5 अक्टूबर की रात हुई आग ने न सिर्फ आठ जिंदगियां निगल लीं, बल्कि राजस्थान की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी। रात करीब साढ़े ग्यारह बजे जब अधिकांश मरीज ऑक्सीजन सपोर्ट पर थे, तभी न्यूरो आईसीयू में अचानक शॉर्ट सर्किट से आग भड़क उठी। कुछ ही मिनटों में पूरा वार्ड धुएं से भर गया, और अफरातफरी मच गई।

जयपुर के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एसएमएस के ट्रॉमा सेंटर में 5 अक्टूबर की रात हुई आग ने न सिर्फ आठ जिंदगियां निगल लीं, बल्कि राजस्थान की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी। रात करीब साढ़े ग्यारह बजे जब अधिकांश मरीज ऑक्सीजन सपोर्ट पर थे, तभी न्यूरो आईसीयू में अचानक शॉर्ट सर्किट से आग भड़क उठी। कुछ ही मिनटों में पूरा वार्ड धुएं से भर गया, और अफरातफरी मच गई। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार अस्पताल स्टाफ उस वक्त मौके पर नहीं था, जिसके कारण परिजनों ने खुद खिड़कियां और शीशे तोड़कर मरीजों को बाहर निकाला। हादसे के दौरान फायर अलार्म और स्प्रिंकलर सिस्टम मौजूद होने के बावजूद काम नहीं किया। यदि समय रहते फायर सिस्टम का उपयोग कर लिया जाता, तो आठ लोगों की जान बच सकती थी।
आग की लपटों ने न केवल वार्ड के उपकरणों को जलाया, बल्कि व्यवस्था की नाकामी को भी उजागर कर दिया। देर रात तक ट्रॉमा सेंटर में चीख-पुकार मची रही और मरीजों को दूसरे वार्डों में शिफ्ट किया गया। घटना की सूचना मिलते ही मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा रात में ही अस्पताल पहुंचे और स्थिति का जायजा लिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने भी इस दुखद हादसे पर शोक व्यक्त किया। लेकिन सबसे बड़ा सवाल उठा चिकित्सा मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर की गैरहाजिरी पर। घटना की जानकारी रात को ही मिलने के बावजूद वे करीब 12 घंटे बाद दोपहर में अस्पताल पहुंचे। सवाल यह है कि जब मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री तक ने घटना को गंभीरता से लिया, तो प्रदेश के चिकित्सा मंत्री को आने में इतना वक्त क्यों लगा?
अस्पताल प्रबंधन की ओर से यह सफाई दी गई कि आग शॉर्ट सर्किट से लगी और जांच के बाद ही किसी पर कार्रवाई होगी। लेकिन यह वही सरकारी रवैया है, जो हर बार जांच कमेटियों की आड़ में जिम्मेदारी से बच निकलता है। निजी अस्पतालों में इस तरह की घटना होती, तो डॉक्टर और प्रबंधन पर तुरंत एफआईआर दर्ज कर गिरफ्तारी कर ली जाती। पर सरकारी संस्थानों में लापरवाही को "सिस्टम फेल्योर" कहकर टाल दिया जाता है। फिलहाल सरकार ने पांच सदस्यीय उच्च स्तरीय जांच समिति बना दी है, लेकिन परिजनों का गुस्सा और आक्रोश यह साफ दिखा रहा है कि लोग सिर्फ जांच नहीं, जवाब चाहते हैं।
इस आग ने एक और सच्चाई को उजागर किया है — राजस्थान में सत्ता बदलती है, लेकिन व्यवस्था नहीं। कांग्रेस के शासन में भी ऐसे हादसे हुए, अब भाजपा सरकार में भी वही कहानी दोहराई जा रही है। यही कारण है कि राज्य की जनता हर पांच साल में सत्ता बदल देती है, मगर उम्मीदों का हाल नहीं बदलता। एसएमएस अस्पताल का यह हादसा केवल एक त्रासदी नहीं, बल्कि चेतावनी है कि यदि अस्पतालों की सुरक्षा, जवाबदेही और मानवता के मानक नहीं सुधरे, तो सरकारी सिस्टम हर बार लोगों की जान लेता रहेगा और हर बार हम "जांच रिपोर्ट आने" का इंतजार करते रहेंगे।