क्या कांग्रेस में पद और ताकत के लिए छटपटा रहे है गहलोत
राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत एक बार फिर अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में हैं। जयपुर जिले के सामोद में 3 अक्टूबर को आयोजित कांग्रेस सेवादल के प्रशिक्षण कार्यक्रम में गहलोत ने कहा कि राजीव गांधी के समय कांग्रेस के लोकसभा में 414 सांसद थे, लेकिन आज यह संख्या घटकर मात्र 90 रह गई है।

राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत एक बार फिर अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में हैं। जयपुर जिले के सामोद में 3 अक्टूबर को आयोजित कांग्रेस सेवादल के प्रशिक्षण कार्यक्रम में गहलोत ने कहा कि राजीव गांधी के समय कांग्रेस के लोकसभा में 414 सांसद थे, लेकिन आज यह संख्या घटकर मात्र 90 रह गई है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को यह आत्ममंथन करना चाहिए कि आखिर पार्टी इस स्थिति तक कैसे पहुंची। गहलोत ने पहली बार सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया कि कांग्रेस में गुटबाजी है और कार्यकर्ता पार्टी के कार्यक्रमों में जाने से डरते हैं क्योंकि उन्हें किसी न किसी गुट से जोड़े जाने का डर रहता है।
गहलोत के इस बयान के बाद राजनीतिक हलकों में चर्चा तेज हो गई है कि क्या उन्होंने राहुल गांधी के नेतृत्व को अप्रत्यक्ष रूप से चुनौती दी है। पिछले 15 वर्षों से कांग्रेस का वास्तविक नेतृत्व राहुल गांधी के ही हाथों में माना जाता है, भले ही अध्यक्ष का पद कभी सोनिया गांधी या अब मल्लिकार्जुन खड़गे के पास रहा हो। इस तुलना के ज़रिए गहलोत ने दरअसल कांग्रेस की गिरती स्थिति और नेतृत्व की रणनीतियों पर सवाल उठाए हैं। पार्टी में इसे कई लोग आत्ममंथन का संदेश मान रहे हैं, तो कुछ इसे राहुल गांधी पर अप्रत्यक्ष निशाना बता रहे हैं।
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि गहलोत के इस बयान के पीछे कई परतें हैं। एक तरफ वह पार्टी के अंदर गुटबाजी और संगठनात्मक कमजोरियों पर चिंता जता रहे हैं, वहीं दूसरी ओर अपनी राजनीतिक सक्रियता और प्रभाव का संकेत भी दे रहे हैं। यह भी गौर करने वाली बात है कि गहलोत को पिछले करीब डेढ़ वर्ष से कांग्रेस में कोई संगठनात्मक पद नहीं मिला है। 40 साल लंबे राजनीतिक जीवन में यह पहला मौका है जब वे कांग्रेस में किसी जिम्मेदारी पर नहीं हैं। माना जाता है कि 2022 में मुख्यमंत्री रहते हुए पार्टी अध्यक्ष पद की दौड़ में उतरने और फिर पीछे हटने की वजह से गांधी परिवार उनसे नाराज़ है।
पार्टी के अंदर गहलोत और सचिन पायलट के मतभेद लंबे समय से चर्चा में रहे हैं। हालांकि गहलोत हमेशा यह कहते रहे कि उनके और पायलट के बीच कोई व्यक्तिगत मतभेद नहीं है, बल्कि यह सब मीडिया की बनाई हुई बातें हैं। मगर 3 अक्टूबर को उन्होंने खुद स्वीकार किया कि कांग्रेस में गुटबाजी मौजूद है, जिससे कार्यकर्ता असमंजस में रहते हैं। गहलोत के इस बयान को कांग्रेस नेतृत्व पर एक और राजनीतिक दबाव के रूप में देखा जा रहा है।
हाल के दिनों में गहलोत लगातार तेज और मुखर बयान दे रहे हैं। कुछ दिन पहले उन्होंने मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा पर छात्रसंघ चुनाव नहीं करवाने को लेकर निशाना साधा था, हालांकि हकीकत यह है कि छात्रसंघ चुनावों को स्थगित करवाने का निर्णय गहलोत सरकार के कार्यकाल में ही हुआ था। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा था कि राजस्थान में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को हटाने के लिए भाजपा के कुछ बड़े नेता दिल्ली में लॉबिंग कर रहे हैं। इन बयानों को भी गहलोत की बढ़ती राजनीतिक सक्रियता और मौजूदगी जताने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
बाड़मेर में कांग्रेस के उभरते राष्ट्रीय नेता हरीश चौधरी के प्रभाव को कमज़ोर करने के लिए गहलोत ने हाल ही में पार्टी से बाहर चल रहे दो पुराने नेताओं अमीन खान और मेवाराम जैन की वापसी करवाई, जिससे यह संदेश गया कि राजस्थान कांग्रेस पर उनका प्रभाव अभी भी बरकरार है। यह कदम गहलोत की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, जिसके जरिए वे राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता बनाए रखना चाहते हैं।
विश्लेषकों का मानना है कि अशोक गहलोत फिलहाल कांग्रेस में किसी बड़े पद या भूमिका के लिए छटपटा रहे हैं। 414 सीटों की ऐतिहासिक तुलना और गुटबाजी की स्वीकारोक्ति से उन्होंने न केवल अपने भीतर की नाराज़गी जाहिर की है, बल्कि पार्टी को यह याद भी दिलाया है कि उनका अनुभव, कद और राजनीतिक नेटवर्क आज भी कांग्रेस के लिए मूल्यवान है। सवाल यही है कि क्या गहलोत की यह बयानबाज़ी आत्ममंथन का संकेत है या फिर राहुल गांधी के नेतृत्व को एक अप्रत्यक्ष चुनौती? कांग्रेस की मौजूदा परिस्थितियों में इस सवाल का जवाब पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के अगले कदम पर निर्भर करेगा।