डूंगरपुर सांसद ने जगाया भरोसा बाड़मेर में मरीजों की लाचारगी
डूंगरपुर-बांसवाड़ा के सांसद और भारतीय आदिवासी पार्टी (BAP) के मुखिया राजकुमार रोत ने कल अपनी पत्नी का प्रसव डूंगरपुर राजकीय जिला चिकित्सालय में करवाकर एक अलग ही संदेश दिया है। आमतौर पर देखा जाता है कि सरपंच से लेकर सांसद-विधायक तक निजी अस्पतालों, वह भी पाँच सितारा सुविधाओं वाले अस्पतालों में ही इलाज कराना पसंद करते हैं।

डूंगरपुर-बांसवाड़ा के सांसद और भारतीय आदिवासी पार्टी (BAP) के मुखिया राजकुमार रोत ने कल अपनी पत्नी का प्रसव डूंगरपुर राजकीय जिला चिकित्सालय में करवाकर एक अलग ही संदेश दिया है। आमतौर पर देखा जाता है कि सरपंच से लेकर सांसद-विधायक तक निजी अस्पतालों, वह भी पाँच सितारा सुविधाओं वाले अस्पतालों में ही इलाज कराना पसंद करते हैं। ऐसे में एक सांसद द्वारा सरकारी अस्पताल पर भरोसा करना समाज और व्यवस्था, दोनों के लिए प्रेरणादायक मिसाल है।
राजकुमार रोत की पत्नी ने इसी अस्पताल में बेटी को जन्म दिया है। सांसद ने सार्वजनिक तौर पर शुभचिंतकों को धन्यवाद देते हुए अस्पताल के स्टाफ की भी सराहना की। उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से यह भी सन्देश दिया कि जब नेता, अफसर और मंत्री अपने बच्चों का जन्म और इलाज सरकारी अस्पतालों में कराने लगेंगे और उन्हें सरकारी स्कूलों में पढ़ाने लगेंगे, तभी इन संस्थानों की असली स्थिति में सुधार देखने को मिलेगा।
लेकिन सांसद राजकुमार रोत का यह उदाहरण एक और सच्चाई को भी उजागर करता है। राजस्थान सहित देशभर के ज्यादातर सरकारी अस्पतालों में आमजन को मूलभूत सुविधाएँ तक ढंग से नहीं मिल पातीं। हाल ही में बाड़मेर से खबर आई थी कि एक गरीब व्यक्ति को अपनी गर्भवती पत्नी को अस्पताल ले जाने के लिए साइकिल का सहारा लेना पड़ा। यह तस्वीर बताती है कि कितने लोग अभी भी स्वास्थ्य सेवाओं तक समय पर पहुँच पाने में असमर्थ हैं।
सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ की कमी, इन्फ्रास्ट्रक्चर की जर्जर स्थिति, ऑक्सीजन प्लांट और उपकरणों की खराब हालत, साफ-सफाई का अभाव और ठेका प्रणाली की अव्यवस्था जैसी समस्याएँ आम हैं। ठेकेदार कम से कम सफाईकर्मी रखकर बाकी बजट बचा लेते हैं, डॉक्टर कई बार केवल सरकारी ड्यूटी दिखाने आते हैं और फिर मरीजों को अपने निजी अस्पताल की ओर मोड़ देते हैं।
आमजन और विश्लेषकों का मानना है कि नेताओं के पास यदि सचमुच बदलाव की इच्छा हो तो केवल चार घंटे अस्पतालों में गंभीरता से लगाए जाएँ, तो आमजन का विश्वास लौट आएगा और चुनाव में जनता बिना प्रचार के ही वोट की झोली भर देगी। लेकिन वास्तविकता यह है कि अस्पतालों की बदबू और गरीबों के पसीने के बीच कोई नेता टिककर खड़ा होना पसंद नहीं करता।
राजकुमार रोत का यह कदम इसलिए भी अहम है क्योंकि यह दिखाता है कि भरोसा और जिम्मेदारी कैसे बनती है। अगर ऐसे उदाहरण बार-बार सामने आएँ और सरकारें वास्तव में स्वास्थ्य ढांचे पर ध्यान दें, तो जनता को न निजी अस्पतालों की दौड़ लगानी पड़ेगी, न ही कोई गर्भवती महिला साइकिल पर प्रसव करने को मजबूर होगी। सांसद का यह फैसला डबल बधाई का हकदार है—एक बेटी के जन्म के लिए और दूसरा एक सकारात्मक मिसाल कायम करने