ममता की मोदी को सलाह, शाह से रहे सावधान बन सकते हैं मीर जाफर, क्या है पूरी कहानी पढ़िए...
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक बार फिर राष्ट्रीय राजनीति में हलचल मचा दी है। 8 अक्टूबर को उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सलाह देते हुए कहा कि वे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से सावधान रहें, क्योंकि शाह ‘कार्यवाहक प्रधानमंत्री’ की तरह व्यवहार कर रहे हैं।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक बार फिर राष्ट्रीय राजनीति में हलचल मचा दी है। 8 अक्टूबर को उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सलाह देते हुए कहा कि वे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से सावधान रहें, क्योंकि शाह ‘कार्यवाहक प्रधानमंत्री’ की तरह व्यवहार कर रहे हैं। ममता ने यहां तक कह दिया कि पीएम मोदी शाह पर अंधा विश्वास न करें, क्योंकि “एक दिन वह मीर जाफर की तरह आपके खिलाफ खड़े हो सकते हैं।” यह बयान सिर्फ एक चेतावनी नहीं, बल्कि राजनीतिक तौर पर बेहद चतुर चाल मानी जा रही है। विपक्षी नेता के तौर पर ममता जानती हैं कि अगर मोदी और शाह की जोड़ी पर शक की रेखा खींची जाए, तो भाजपा की एकजुटता की छवि को झटका दिया जा सकता है।
दरअसल, ममता का यह बयान वोटर लिस्ट संशोधन (SIR) विवाद के दौरान आया, जिसे वे भाजपा की “साजिश” बताती रही हैं। ममता का आरोप है कि अमित शाह केंद्र की एजेंसियों के जरिये बंगाल में भाजपा को फायदा पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में मोदी को “सावधान रहने” की सलाह देना, राजनीतिक दृष्टि से भाजपा की शीर्ष जोड़ी को लक्ष्य बनाकर हमला करना है। यह बयान उस समय आया है जब बंगाल की कानून-व्यवस्था पर लगातार केंद्र की नजर है और सीआरपीएफ जैसी केंद्रीय बलों की तैनाती पर ममता की नाराज़गी खुलकर सामने आ रही है।
अब सवाल यह उठता है कि क्या ममता की यह चिंता वाकई किसी गुटबाजी की ओर इशारा करती है? राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मोदी और शाह के बीच गलतफहमी की संभावना बेहद कम है। दोनों की दोस्ती और राजनीतिक साझेदारी तीन दशकों से अधिक पुरानी है। 1980 के दशक में जब नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भाजपा में आए, तभी उनकी मुलाकात युवा कार्यकर्ता अमित शाह से हुई थी। गुजरात में मोदी के मुख्यमंत्री बनने के बाद शाह को अहम जिम्मेदारियां दी गईं। मोदी ने शाह पर भरोसा दिखाते हुए उन्हें गृह मंत्रालय जैसे सशक्त विभागों का दायित्व सौंपा, और दोनों ने मिलकर गुजरात मॉडल की नींव रखी। यही तालमेल बाद में दिल्ली की सत्ता तक पहुंचने का कारण बना।
राजनीति के जानकारों का मानना है कि अमित शाह को लेकर ममता का यह आरोप कि वे “अघोषित प्रधानमंत्री” की तरह व्यवहार करते हैं, अतिशयोक्ति है। शाह निस्संदेह केंद्र सरकार में सबसे प्रभावशाली मंत्री हैं, लेकिन उनका हर बड़ा फैसला प्रधानमंत्री मोदी की सहमति से ही होता है। गृह मंत्रालय की नीतियों, कानून-व्यवस्था और एजेंसियों के उपयोग को लेकर शाह की भूमिका अहम है, परंतु उनकी रणनीति और मोदी के नेतृत्व के बीच कभी विरोधाभास नहीं दिखा। यही कारण है कि मोदी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर निश्चिंत होकर भारत का प्रतिनिधित्व कर पाते हैं — क्योंकि देश की आंतरिक सुरक्षा शाह के भरोसे सुरक्षित मानी जाती है।
अमित शाह की कार्यशैली में कभी-कभी कठोर अवश्य दिखाई देती है, लेकिन यह उनके मंत्रालय की प्रकृति से जुड़ी है। शाह पर भाजपा संगठन, चुनावी रणनीति और आंतरिक सुरक्षा—तीनों की बागडोर है। यह वही क्षेत्र हैं जहाँ मोदी उन पर भरोसा करते हैं। मोदी और शाह के बीच का रिश्ता महज़ दोस्ती नहीं, बल्कि परस्पर विश्वास और जिम्मेदारी पर टिका साझेदारी का रिश्ता है। इसलिए ममता बनर्जी चाहे जितनी कोशिश कर लें, मोदी-शाह की जोड़ी में दरार डालना आसान नहीं होगा।
हालांकि एक सवाल यह भी उठता है कि अगर कभी मोदी के बाद भाजपा को नया नेता चुनना पड़ा, तो क्या अमित शाह सबसे प्रबल दावेदार होंगे? फिलहाल तो संकेत यही हैं। भाजपा के संगठनात्मक ढांचे में शाह का कद सबसे बड़ा है। वे पार्टी की नीतियों, चुनावी रणनीतियों और शासन-प्रणाली के प्रमुख शिल्पकार माने जाते हैं। लेकिन मोदी के बाद की राजनीति अब भी कई परतों में छिपी है — न तो मोदी ने कभी अपना उत्तराधिकारी घोषित किया है, और न ही पार्टी ने इस विषय पर खुलकर कोई संकेत दिया है।
इस पूरे विवाद में ममता बनर्जी का बयान एक “राजनीतिक मनोवैज्ञानिक हमला” ज्यादा लगता है। वह भाजपा के भीतर शक की हवा पैदा करने का प्रयास कर रही हैं, ताकि 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले बंगाल की जनता में “केंद्र बनाम राज्य” की भावना उभारी जा सके। लेकिन हकीकत यह है कि मोदी और शाह के रिश्ते में अब तक कोई सार्वजनिक मतभेद नहीं देखा गया है। दोनों की जोड़ी पिछले दो दशकों से भारतीय राजनीति की सबसे मजबूत और प्रभावशाली जोड़ी मानी जाती है।
शॉर्ट में कहा जाए तो ममता बनर्जी की “चेतावनी” एक राजनीतिक रणनीति है, न कि वास्तविक चिंता। उन्होंने भाजपा के भीतर शंका का बीज बोने की कोशिश जरूर की है, परंतु मोदी और शाह के बीच विश्वास की दीवार इतनी मजबूत है कि वह किसी भी बाहरी हमले से हिलती नहीं दिखती। यह जोड़ी भारतीय राजनीति की सबसे डिसिप्लिन, मैच्योर और रिजल्टबेस्ड जोड़ियों में से एक है — और फिलहाल उनके बीच किसी “मीर जाफर” के पैदा होने की संभावना दूर-दूर तक नजर नहीं आती।