कांग्रेस की मुसीबत नरेश मीणा ? जातीय समीकरण ने बदली बाजी...
राजस्थान की राजनीति में अंता विधानसभा सीट इस वक्त चर्चा के केंद्र में है। 11 नवंबर को होने वाले उपचुनाव से पहले कांग्रेस और भाजपा दोनों ही रणनीति में जुटी हैं, लेकिन इस चुनाव की सबसे बड़ी खबर कांग्रेस के बागी नेता नरेश मीणा की एंट्री है।

राजस्थान की राजनीति में अंता विधानसभा सीट इस वक्त चर्चा के केंद्र में है। 11 नवंबर को होने वाले उपचुनाव से पहले कांग्रेस और भाजपा दोनों ही रणनीति में जुटी हैं, लेकिन इस चुनाव की सबसे बड़ी खबर कांग्रेस के बागी नेता नरेश मीणा की एंट्री है। कांग्रेस ने पूर्व मंत्री प्रमोद जैन भाया को टिकट देकर एक बार फिर पुराने चेहरे पर भरोसा जताया है, जबकि नरेश मीणा ने बगावत करते हुए 14 अक्टूबर को नामांकन दाखिल करने का ऐलान कर दिया है। मीणा का कहना है कि वे कांग्रेस विचारधारा के समर्थक हैं, लेकिन जब कांग्रेस ने उन्हें नजरअंदाज किया तो वे अब जीत के लिए स्वतंत्र रूप से मैदान में उतरेंगे। उनका दावा है कि यदि उन्हें टिकट दिया जाता तो कांग्रेस की जीत तय थी, मगर अब पार्टी ने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है।
अंता उपचुनाव की पृष्ठभूमि दिलचस्प है। यहां के भाजपा विधायक कंवरलाल मीणा को एक आपराधिक मामले में तीन साल की सजा मिलने के बाद उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई, जिससे यह सीट खाली हो गई। इस उपचुनाव में कुल 2.27 लाख से अधिक मतदाता अपने वोट का इस्तेमाल करेंगे, जिनमें महिला मतदाता लगभग आधी हिस्सेदारी रखती हैं। कांग्रेस जहां अपने पुराने कार्यकर्ता प्रमोद जैन भाया पर दांव खेल रही है, वहीं भाजपा ने अब तक उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की सलाह के बाद ही भाजपा प्रत्याशी का नाम तय होगा। इस बीच राजे की पूर्व मंत्री प्रभुलाल सैनी के नाम पर सहमति बनने की चर्चा है, जो वर्ष 2013 में अंता से विजेता रहे थे।
कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी उलझन नरेश मीणा हैं। पार्टी प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने 8 अक्टूबर को बयान दिया था कि मीणा कांग्रेस के सदस्य ही नहीं हैं, इसलिए उन्हें टिकट देना संभव नहीं था। लेकिन दो दिन बाद कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने उन्हें छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया। यह विरोधाभास कांग्रेस के भीतर की असमंजस को उजागर करता है। जब मीणा पार्टी में थे ही नहीं, तो फिर उनका निष्कासन क्यों? इससे पहले देवली-उनियारा उपचुनाव में भी नरेश मीणा को टिकट न मिलने पर उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा था और तब भी कांग्रेस ने उन्हें छह वर्ष के लिए बाहर कर दिया था। ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व का यह कदम खुद उसकी संगठनात्मक कमजोरी को दर्शाता है।
नरेश मीणा की छवि एक आक्रामक और बागी नेता की रही है। वे पहले भी कई बार विवादों में रह चुके हैं, जिनमें सबसे चर्चित मामला देवली-उनियारा उपचुनाव के दौरान एक एसडीएम को थप्पड़ मारने का रहा है। वे अपने समर्थकों के साथ व्यापक जनाधार रखते हैं और खासकर मीणा समाज में उनकी पकड़ मजबूत मानी जाती है। इस समुदाय की संख्या अंता क्षेत्र में लगभग 40,780 है, जबकि सैनी समाज के 43,400 मतदाता हैं। कुल मिलाकर सैनी और मीणा समुदाय मिलकर करीब 84 हजार वोटों का बड़ा समूह बनाते हैं, जो यहां के चुनाव परिणाम को निर्णायक रूप से प्रभावित कर सकता है।
जातीय समीकरण की बात करें तो अनुसूचित जाति मतदाताओं की संख्या लगभग 52,804 है, जो किसी भी उम्मीदवार के लिए वोट शेयर का अहम हिस्सा बन सकते हैं। इनके अलावा धाकड़ (22,480), राजपूत (20,900), ब्राह्मण (10,850), गुर्जर (11,206), जाट (10,900) और मुस्लिम (6,400) मतदाता भी अहम भूमिका निभाते हैं। इस सामाजिक संतुलन में यदि मीणा समुदाय के वोट कांग्रेस से छिटकते हैं, तो सीधा फायदा भाजपा को होगा। भाजपा इस समीकरण को समझते हुए अभी प्रत्याशी चयन में सावधानी बरत रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नरेश मीणा का चुनाव मैदान में उतरना कांग्रेस के लिए सिरदर्द साबित हो सकता है। वे न केवल कांग्रेस के पारंपरिक वोटों में सेंध लगा सकते हैं बल्कि विरोधी दलों को भी अप्रत्यक्ष रूप से लाभ पहुंचा सकते हैं। भाजपा पहले ही इस बगावत से उत्साहित है और उसे उम्मीद है कि त्रिकोणीय मुकाबले में कांग्रेस का वोट बैंक बिखर जाएगा। हालांकि नरेश मीणा की छवि विवादित है और उन पर कई आपराधिक मामले भी दर्ज हैं, लेकिन स्थानीय स्तर पर उनका असर इससे कम नहीं हुआ है।
भाजपा में प्रत्याशी चयन को लेकर अंदरूनी चर्चा जोरों पर है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ और वसुंधरा राजे के बीच हाल ही में हुई मुलाकात में अंता उपचुनाव को लेकर विस्तृत मंथन हुआ। भाजपा चाहती है कि उसका उम्मीदवार ऐसा हो जो सैनी और मीणा दोनों समुदायों के वोटों को आकर्षित कर सके। वहीं कांग्रेस अपनी एकजुटता दिखाने की कोशिश कर रही है, लेकिन नरेश मीणा की बगावत ने उसकी प्रचार रणनीति को कमजोर कर दिया है।
अंता उपचुनाव अब केवल एक सीट की लड़ाई नहीं रहा, बल्कि यह प्रदेश की सियासत में शक्ति संतुलन का संकेत देने वाला चुनाव बन गया है। कांग्रेस के लिए यह चुनौती है कि वह अपने बागी नेता की वजह से बिखराव से बचे, जबकि भाजपा इसे अपने पक्ष में माहौल बनाने का मौका मान रही है। 14 अक्टूबर को नरेश मीणा नामांकन करेंगे, उसके बाद यह साफ हो जाएगा कि अंता का रण कांग्रेस बनाम भाजपा रहेगा या एक त्रिकोणीय जंग में बदल जाएगा। अभी इतना तय है कि अंता में राजनीति का तापमान दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है और इस बार का उपचुनाव राजस्थान की सियासी दिशा तय करने वाला साबित हो सकता है।