उमाभारती के दबाव के बाद नई आबकारी नीति जुलाई के बाद लागू करने की तैयारी
भोपाल | नगरीय निकाय चुनाव को देखते हुए अब नई आबकारी नीति 1 अप्रैल की बजाय 1 जुलाई से लागू करने पर विचार किया जा रहा है। तब तक प्रदेश में निकाय चुनाव भी हो जाएंगे। अंतिम निर्णय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से चर्चा करने के बाद ही लिया जाएगा। सरकार पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के शराबबंदी को लेकर अभियान शुरू करने के ऐलान के बाद नई आबकारी नीति को 3 माह के लिए टालने पर डालने पर विचार कर रही है। मंत्रालय सूत्रों ने बताया कि आबकारी विभाग ने नई आबकारी नीति का प्रस्ताव तैयार कर राज्य सरकार को पिछले सप्ताह भेज दिया था। हर साल 15 मार्च तक टेंडर की प्रक्रिया पूरी कर ली जाती है, ताकि आगामी वित्तीय वर्ष (1अप्रैल से 31 मार्च) में शराब के ठेके 1 अप्रैल से शुरू हो सकें, लेकिन वर्ष 2020-21 के लिए प्रस्ताव तैयार होने से पहले ही नई शराब दुकानों को लेकर विवाद शुरू हो गया।
उमा भारती के तेवर के बाद कांग्रेस के साथ भाजपा के अंदर भी नई चर्चा छिड़ गई है। आर्थिक संकट से जूझ रही राज्य सरकार आय बढ़ाने के लिए शराब दुकानों की संख्या बढ़ाने पर विचार कर रही थी, लेकिन राजनीतिक बवाल खड़ा होने के कारण उसे बैकफुट पर जाना पड़ा। यदि ऐसे में सरकार नई आबकारी नीति लाती है तो निकाय चुनाव में शराब बंदी मुद्दा बन सकता है।
पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने प्रदेश में शराबबंदी को लेकर अभियान शुरू करने का ऐलान किया तो सरकार घिरते नजर आए। यही कारण है कि मुख्यमंत्री ने 4 फरवरी से रतलाम में नशाबंदी के खिलाफ अभियान चलाने की शुरूआत कर दी। जानकारों का मानना है कि नगरीय निकाय चुनाव से पहले उमा भारती के अभियान का असर भाजपा को नुकसान पहुंंचा सकता है। नई नीति को तीन महीने के लिए होल्ड करने की एक वजह यह भी मानी जा रही है।
सरकार ने दिया है शपथ पत्र
कोरोना के कारण मौजूदा वित्तीय वर्ष में शराब दुकानें बंद रहने से ठेकेदारों को नुकसान हुआ था। बावजूद सरकार टेंडर की शर्तों के मुताबिक ही ठेकेदारों से राशि वसूल कर रही थी। इसे लेकर मप्र लिकर डिस्ट्रीब्यूटर्स एसोसिएशन ने सुको में याचिका दायर कर राहत मांगी थी। इसके बाद सुको में दिए शपथ पत्र में सरकार ने कहा था कि ठेकेदारों को हुए नुकसान की भरपाई के लिए उन्हें दो माह तक ठेके चलाने की अनुमति दी जाएगी।
सरकार को राजस्व की चिंता
दरअसल, मध्य प्रदेश में उमा भारती अकेली राजनेता नहीं हैं, जिन्होंने शराबबंदी की मांग की है। यदा-कदा इसे लेकर आवाजें उठती रही हैं। कभी सामाजिक संगठनों की तरफ से मांग उठती है तो कभी राजनीतिक दलों के भीतर ही बातें होती रही हैं। शराब बंदी की मांग के बीच सरकार आज तक इस सवाल का जवाब नहीं खोज पाई कि यदि शराब को पूरे प्रदेश में प्रतिबंधित कर दिया तो इससे मिलने वाले राजस्व की भरपाई कहां से होगी?