टोल बैरियर आठ साल बाद भी नहीं जुड़े कॉल सेंटर से
रीवा | राष्ट्रीय राजमार्ग में होने वाले हादसों में कमी लाने व रोकने के लिए टोल बूथों को कॉल सेंटरों से जोड़ने के साथ ही एक्सीडेंट रिस्पांस सिस्टम की स्थापना किये जाने की योजना 2012 में लागू की गई थी। जिसकी जबावदारी एमपीआरडीसी को सौंपी गई थी किंतु 8 वर्ष का समय बीत जाने के बाद भी यह सिस्टम हाइवे में नहीं लग सका है। ऐसे में आये दिन हो रहे हादसों की जानकारी समय पर न मिलने से लोगों की मौत हो रही है।
लापरवाह विभाग
एक्सीडेंट रिस्पांस सिस्टम की स्थापना के लिए रोड डेवलपमेंट कार्पोरेशन को जबावदारी दी गई थी, लेकिन विभाग की लापरवाही के चलते यह योजना ठप पड़ी हुई है और प्रतिदिन हाइवे में होने वाले हादसे की सूचना लोगों के साथ-साथ पुलिस तक नहीं पहुंच पाती। हालांकि हाइवे पर दुर्घटनाओं को रोकने के लिए हाइवे दुर्घटना वैन चलती है किंतु कॉल सेंटरों से न जुड़े होने के कारण काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है।
हाइवे में तत्काल दुर्घटना रोकने व दुर्घटना के बाद शीघ्र उपचार के लिए जहां मेडिकल पुलिस व रिकवरी व्हीकल दिये जाने की योजना थी तो वहीं इस पर अमल करने के निर्देश भी राष्ट्रीय राजमार्ग अर्थाटी के द्वारा दिये गये थे किंतु यह योजना अब तक अधर में लटकी हुई है।
क्या था लाभ
एक्सीडेंट रिस्पॉस सिस्टम के शुरू हो जाने से जहां घायलों को तत्काल उपचार मुहैया होता तो वहीं परिजनों को भी इसकी सूचना तत्काल मिल जाती।
फलीभूत नहीं हुई योजना
स्ववित्तीय पूंजी निवेश या फिर राजमार्ग अर्थाडी के द्वारा बनाये जाने वाले राजमार्गों पर बने टोल बूथों में टेलीफोन स्थापित किया जाना था। यह टेलीफोन कॉल सेंटरों से जोेड़ने थे किंतु अभी भी यह काम पूरा नहीं हो सका है।
हाइवे हेल्प लाइन ने तोड़ा दम
राजमार्ग में होने वाले हादसों के लिए पूर्व में भी हाइवे हेल्प लाइन चलाई गई थी। यह हेल्प लाइन 24 घंटे मार्गों पर दौड़ती थी और हादसा होने पर घायलों को तत्काल उपचार के लिए भर्ती कराया जाता था, किंतु हाइवे हेल्प लाइन भी पूरी तरह से दम तोड़ चुकी है। सूत्रों पर भरोसा करें तो हाइवे हेल्प लाइन काफी समय तक पुलिस कंट्रोल रूम में खड़ी थी और धीरे-धीरे वह पूरी तरह से कंडम हो गई। हाइवे हेल्प लाइन का उपयोग शायद ही राष्ट्रीय राजमार्ग पर किया गया हो।