रूमादेवी फाउंडेशन : प्रसिद्ध युवा वीणा भजन कलाकारों की फैक्ट्री
राजस्थान के बाड़मेर से निकलकर पूरे देश और दुनिया में अपनी पहचान बनाने वाली रूमादेवी ने हस्तशिल्प और महिला सशक्तिकरण के साथ-साथ लुप्त होती लोक परंपराओं को भी नया जीवन दिया है।

राजस्थान के बाड़मेर से निकलकर पूरे देश और दुनिया में अपनी पहचान बनाने वाली रूमादेवी ने हस्तशिल्प और महिला सशक्तिकरण के साथ-साथ लुप्त होती लोक परंपराओं को भी नया जीवन दिया है। दादी से कढ़ाई सीखकर आठवीं कक्षा में पढ़ाई छोड़ देने वाली रूमादेवी आज हजारों महिलाओं की पहचान और सम्मान का दूसरा नाम हैं। उन्होंने 50,000 से अधिक ग्रामीण महिलाओं को स्वरोजगार और आत्मनिर्भरता से जोड़ा, लेकिन उनके फाउंडेशन की सबसे बड़ी उपलब्धि है — पश्चिमी राजस्थान की विलुप्त होती वीणा भजन परंपरा का पुनर्जीवन।
स्वर्गीय दान सिंह जी (दानजी) जैसे महान वीणा भजन गायक की स्मृति में आयोजित वाणी उत्सव अब सिर्फ एक सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक आंदोलन बन चुका है। इस मंच पर राजस्थान के 100 से अधिक गाँवों से 500 से ज्यादा कलाकार जुटते हैं, जिनमें से कई पहली बार किसी मंच पर आते हैं। यहाँ परंपरागत वीणाएँ वितरित की जाती हैं, लाखों रुपये की पुरस्कार राशि दी जाती है और उन भजनों को डिजिटली सुरक्षित किया जाता है जो अब तक सिर्फ चौपालों और गाँव की गलियों में गूंजते थे। हजारों ग्रामीण दर्शकों की मौजूदगी में ये कलाकार पहली बार सम्मानित होते हैं, उनके नाम प्रमाणपत्रों पर दर्ज होते हैं और उनका आत्मविश्वास आसमान छू लेता है।
रूमादेवी फाउंडेशन की पहल से न सिर्फ बुज़ुर्ग कलाकारों को नई पहचान मिली है बल्कि युवा पीढ़ी भी आकर्षित हो रही है। केलम-दरिया बहनें, अशोक सहेलिया, सुरेश जाणी और प्रकाश खट्टू जैसे नाम अब हर संगीतप्रेमी जानता है। पाँच साल पहले तक ये कलाकार अपने गाँव से बाहर पहचान नहीं रखते थे, लेकिन फाउंडेशन ने उन्हें प्रशिक्षण, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, वाद्ययंत्र, स्कॉलरशिप और मंच उपलब्ध कराकर नई दिशा दी। यही कारण है कि आज रूमादेवी फाउंडेशन को लोग पश्चिमी राजस्थान की वीणा भजन कलाकारों की फैक्ट्री कहने लगे हैं।
सिर्फ वीणा भजन ही नहीं, फाउंडेशन ने हरजस गायन परंपरा को भी पुनर्जीवित किया है। पहले के जमाने में भजन संध्याओं में महिलाएँ वाद्ययंत्र के बिना ‘हरि जस’ यानी भगवान का गुणगान करती थीं, लेकिन आधुनिकता की आंधी में यह परंपरा लगभग खत्म हो गई थी। 2025 के वाणी उत्सव में पहली बार हरजस गायन की अलग श्रेणी शुरू की गई, जहाँ ग्रामीण महिलाएँ अपनी खोई हुई परंपरा को गर्व से प्रस्तुत करती दिखीं।
फाउंडेशन के सचिव विक्रम सिंह इस मिशन के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। सत्संग और वीणा भजन कला के प्रेमी विक्रम सिंह ने पुराने कलाकारों की स्मृतियों को संरक्षित करने का बड़ा कार्य किया है। उनकी दूरदर्शिता और कला प्रेमी सोच ने इस आंदोलन को दिशा दी है।
आज रूमादेवी फाउंडेशन न सिर्फ लोकसंगीत का संरक्षण कर रहा है, बल्कि छात्रवृत्ति योजनाओं, नशा मुक्ति अभियानों, शिक्षा नवाचार और महिलाओं के उद्यम विकास में भी अग्रणी भूमिका निभा रहा है। हार्वर्ड, अबू धाबी और दुबई जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों तक पहुँची रूमादेवी अब सिर्फ बाड़मेर की बेटी नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक दूत बन चुकी हैं।
प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले "वाणी उत्सव" कार्यक्रम के आयोजक रूमादेवी फाउंडेशन ने यह साबित कर दिखाया है कि यदि लोकपरंपराएँ सही हाथों में हों तो वे मिटती नहीं, बल्कि और ज्यादा रोशनी बिखेरती हैं।