डोनाल्ड ट्रंप की गीदड़ भभकी का पीएम मोदी ने ढूंढा अल्टरनेट?
पुतिन और जिनपिंग से मोदी की गर्मजोशी ने ट्रंप को दी दहशत ?

शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का शिखर सम्मेलन 31 अगस्त और 1 सितंबर को चीन के तिआनजिन शहर में आयोजित हुआ, जिसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मौजूदगी ने वैश्विक मंच पर जोरदार हलचल मचा दी है। सम्मेलन में इन तीन नेताओं की मित्रतापूर्ण तस्वीरें और आत्मीय पल चर्चा का विषय बने। मोदी, जिनपिंग और पुतिन का हंसते हुए और एक-दूसरे के साथ घुलते-मिलते नजर आना इस बात का संकेत था कि अमेरिका द्वारा शुरू किए गए टैरिफ युद्ध के बीच भारत झुकने को तैयार नहीं है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस से तेल खरीदने को लेकर भारत पर 50 फीसदी टैरिफ का ‘डबल हंटर’ चलाया था, लेकिन एससीओ की बैठक में मोदी का आत्मविश्वास और पुतिन-जिनपिंग की नजदीकियां इस दबाव को नकारने का संदेश देती दिखीं।
इस सम्मेलन से पहले यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की ने पीएम मोदी से फोन पर बातचीत की। उनका मानना है कि रूस पर असर डालने में भारत ही सक्षम है। अमेरिका की ओर से अब तक की कोशिशों के बावजूद रूस-यूक्रेन युद्ध थमा नहीं है। ऐसे में जेलेंस्की को विश्वास है कि मोदी पुतिन से संवाद कर कोई सम्मानजनक समाधान निकाल सकते हैं। यह भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका का संकेत है, जहां अब उसे महाशक्ति की श्रेणी में देखा जाने लगा है।
इसी बीच, अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने विवादित बयान देकर नया विवाद खड़ा कर दिया। उन्होंने दावा किया कि रूस से सस्ते दामों पर तेल खरीदकर भारत में सिर्फ ब्राह्मण वर्ग के कॉर्पोरेट घराने मुनाफा कमा रहे हैं, जबकि आम जनता को कोई लाभ नहीं मिल रहा। नवारो ने यहां तक कहा कि भारत, चीन और रूस की निकटता वैश्विक स्थिरता के लिए खतरा है। उनके इस बयान को भारत में ‘बांटो और राज करो’ जैसी अंग्रेजों की नीति का नया रूप करार दिया गया। कार्यकर्ताओं और आम नागरिकों ने अमेरिका की इस जातिगत टिप्पणी की कड़ी आलोचना की।
कांग्रेस के वरिष्ठ दलित नेता डॉ. उदित राज ने नवारो के बयान का समर्थन करते हुए कहा कि वास्तव में ऊँची जातियों के कॉर्पोरेट घराने ही रूस से सस्ता तेल खरीदकर मुनाफा कमा रहे हैं और निम्न वर्गों को इससे कोई लाभ नहीं हो रहा। हालांकि, यह बयान भारत में ज्यादा स्वीकार नहीं हुआ और इसे समाज में फूट डालने की कोशिश माना गया। वहीं भारत के पेट्रोलियम मंत्री हरदीप पुरी ने स्पष्ट कहा कि भारत की नीति ने वैश्विक तेल बाजार को स्थिर किया है और कीमतें 200 डॉलर प्रति बैरल तक जाने से रोकी हैं। भारत पूरी तरह कानूनी ढांचे और अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन कर रहा है।
अमेरिका की बौखलाहट इस तथ्य से भी झलकती है कि अब धीरे-धीरे ट्रंप प्रशासन ने मोदी और भारत के प्रति नरमी दिखाना शुरू कर दी है। रिपोर्ट्स बताती हैं कि ट्रंप ने भारत को ‘महान देश’ और मोदी को ‘महान नेता’ बताते हुए उनकी तारीफ शुरू की है। स्पष्ट है कि भारत की आत्मनिर्भर और दृढ़ नीति ने अमेरिका को मजबूर किया है कि वह अपना रुख बदले।
तिआनजिन शिखर सम्मेलन ने दुनिया को यह साफ संदेश दिया कि वैश्विक राजनीति अब नए समीकरणों की ओर बढ़ रही है। चीन, रूस और भारत की एकजुटता ने अमेरिका को यह एहसास करा दिया है कि टैरिफ वार या दबाव की राजनीति से अब कोई देश झुकने वाला नहीं है। यह सम्मेलन न केवल एशियाई देशों की साझेदारी को मजबूत करता है, बल्कि नए वैश्विक शक्ति-संतुलन की नींव भी रखता है।